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शीतपित्त और उसके आयुर्वेदिक उपचार
शीतपित्त और उसके आयुर्वेदिक उपचार
शीतपित्त यानी अर्टिकरिया एक त्वचा संक्रमण है जिसमें त्वचा पर खुजली, लाल रंग की गांठें या खुजली वाले दाने होते हैं। ये दाने शरीर के किसी भी हिस्से पर उत्पन्न हो सकते हैं और छोटे से बड़े आकार तक हो सकते हैं। शीतपित्त को हिंदी में "खुजली", "पित्ती" या "छलनी" भी कहा जाता है।

शीतपित्त और उसके आयुर्वेदिक उपचार

शीतपित्त और उसके आयुर्वेदिक उपचार 

 

शीतपित्त  यानी अर्टिकरिया एक त्वचा संक्रमण है जिसमें त्वचा पर खुजली, लाल रंग की  गांठें या खुजली वाले दाने होते हैं। ये दाने शरीर के किसी भी हिस्से पर उत्पन्न हो सकते हैं और छोटे से बड़े आकार तक हो सकते हैं। शीतपित्त को हिंदी में "खुजली", "पित्ती" या "छलनी" भी कहा जाता है।

 

यह रोग त्वचा के ऊपरी तंतुओं में संक्रमण के कारण हो सकता है जो त्वचा की ऊपरी परत के अंदर रोगजनक जीवाणुओं से खुजली और दानों को उत्पन्न करते हैं। इस रोग में  जल्द से जल्द उपचार की जरूरत होती है, क्योंकि लंबे समय तक अनुपचारित रहने से आपकी त्वचा पर निशान या अन्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

 

आयुर्वेद में शीतपित्त का इलाज त्वचा संबंधी रोग को ठीक करने के लिए कुछ जड़ी बूटियों और घरेलू उपचार के रूप में किया जाता है।

 

शीतपित्त के लिए आयुर्वेद में कुछ दवाएं हैं,  जैसे की नीम, आंवला, मंजिष्ठा, जीरा, खदीर, शिरीष, गुग्गुल, 

महामंजिष्ठादि । इन दवाओं का इस्तेमाल शरीर के विषाणुओं से लड़ने में मदद करता है जो शीतपित्त के लक्षणों को ठीक करने में मदद करते हैं।



शीतपित्त के लक्षण विभिन्न हो सकते हैं जो निम्नलिखित हैं:

 

  • खुजली: यह शीतपित्त  का सबसे सामान्य लक्षण होता है। यह त्वचा पर अधिकतर जगहों पर होती है और इसे दबाने या स्क्रैच करने से बढ़ जाती है।

 

  • लाल दाने: ये शीतपित्त  के अन्य लक्षणों के साथ होते हैं। ये अक्सर एक या एक से अधिक जगहों पर उत्पन्न होते हैं और एक बार मौजूद होने के बाद थोड़े समय में गायब हो जाते हैं।

 

  • सूजन: शीतपित्त के लक्षणों में सूजन का भी उल्लेख होता है। यह उन जगहों पर होता है जहाँ लाल दाने उत्पन्न होते हैं।

 

  • जलन: यह शीतपित्त  के अन्य लक्षण हैं। यह उन जगहों पर होता है जहाँ लाल दाने उत्पन्न होते हैं।

 

  • श्वसन में तकलीफ: जब शीतपित्त  के लक्षण गंभीर होते हैं तो श्वसन में तकलीफ हो सकती है।

 

  • नाक से पानी या बलगम: शीतपित्त  के लक्षणों में नाक से पानी या बलगम भी निकल सकता है।

 

  • सिरदर्द: कुछ लोगों को शीतपित्त  के लक्षणों में सिरदर्द होता है।

 

  • थकान: शीतपित्त  के लक्षणों से थकान भी हो सकती है।



शीतपित्त के होने के कुछ कारण निम्नलिखित हैं:

 

  • खाद्य पदार्थों के खिलाफ एलर्जी, जैसे कि शेलफिश, केला, अंडे, नट्स, आदि

  • धूल, धुंए, कीटाणु या अन्य वायु प्रदूषण से एलर्जी

  • अंतः प्रेरक दवाओं के सेवन से, जो खुजली को उत्तेजित करते हैं, जैसे एस्पिरिन या ईसोप्रेनालीन

  • रक्त में विकार या अधिक थकान या तनाव के कारण 

  • फिजिकल उत्तेजकों से, जैसे ठंडा पानी या धूप

  • विविध विनिर्माण उत्पादों से जैसे जेली, शैम्पू, साबुन और अन्य कॉस्मेटिक उत्पादों से एलर्जी

  • नस्लजातीय विकार जैसे एक्जिमा या आईडीई

  • अन्य संक्रमण या बीमारियाँ जैसे स्कार्लेट फीवर, हेपेटाइटिस बी, या लेप्रोसी

 

यदि आपको शीतपित्त के लक्षण हैं तो आपको एक डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए ताकि उससे संबंधित सही कारण का पता लगाया जा सके।



शीतपित्त के लिए आयुर्वेदिक उपचार निम्नलिखित हैं:

 

  • शीतल जल: शीतल जल के सेवन से शीतपित्त के लक्षणों में कमी हो सकती है। एक चम्मच शीतल जल को एक गिलास पानी में मिलाकर दिन में कई बार पीना चाहिए।

 

  • हल्दी: हल्दी में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो शीतपित्त के लक्षणों को कम कर सकते हैं। एक चम्मच हल्दी को गुड़ या दूध में मिलाकर दिन में कई बार लेना चाहिए।

 

  • गिलोय: गिलोय में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो शीतपित्त के लक्षणों को कम कर सकते हैं। गिलोय का रस निकालकर दिन में तीन बार लेना चाहिए।

 

  • नीम: नीम में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो शीतपित्त के लक्षणों को कम कर सकते हैं। नीम के पत्तों को पानी में उबालकर इसे पीना चाहिए।

 

  • घृतकुमारी: घृतकुमारी के रस  का उपयोग भी शीतपित्त के लक्षणों को कम करने के लिए किया जाता है। इसे नियमित रूप से शीतपित्त वाली जगह पर लगाएं।

 

  • तुलसी: तुलसी की पत्तियों  का उपयोग खुजली और सूजन को कम करने के लिए किया जाता है। इसे पानी में उबालकर इससे बनी चाय को दिन में 2-3 बार पीएं या तुलसी की पत्तियों को पीसकर शीतपित्त वाली जगह पर लगाएं।

 

  • शतावरी: शतावरी एक औषधि होती है जो शीतपित्त के लिए उपयोगी होती है। आप शतावरी  के रस को पी सकते हैं या फिर शतावरी के चूर्ण को पानी के साथ ले सकते हैं।

 

  • त्रिफला: त्रिफला एक अच्छा  रक्तशोधक है और यह त्वचा के लिए उपयोगी होता है। आप त्रिफला के पाउडर को गर्म पानी के साथ ले सकते हैं।

 

  • घी: घी एक अतिरिक्त उपाय हो सकता है जो शीतपित्त के लिए उपयोगी होता है। आप दिन में दो चम्मच घी का सेवन कर सकते हैं।




शीतपित्त  से पीड़ित होने पर निम्नलिखित सावधानियां लेने की सलाह दी जाती है:

 

  • त्वचा को साफ और सूखा रखें  : शीतपित्त से पीड़ित होने पर अपनी त्वचा को साफ और सूखा रखना बहुत जरूरी है।

 

  • उबले पानी से स्नान न करें: अधिक गर्म पानी से स्नान  न करें, बल्कि ठंडे पानी से नहाएं।

 

  • तंबाकू और शराब का सेवन न करें: शीतपित्त  से पीड़ित व्यक्ति को तंबाकू और शराब का सेवन नहीं करना चाहिए।

 

  • अपने डॉक्टर से जाँच कराएं: यदि आपको शीतपित्त  है तो आपको अपने डॉक्टर से जाँच करानी चाहिए और डॉक्टर द्वारा बतायी गई दवाओं को लेना चाहिए ।

 

  • संतुलित आहार लें: संतुलित आहार लेना बहुत महत्वपूर्ण है। फल और सब्जियों को ज्यादा खाएं और तले-भुने खाद्य पदार्थों से बचें।

 

  • खुशबूदार चीजों से बचें: शीतपित्त  से पीड़ित व्यक्ति को खुशबूदार चीजों जैसे इंधन, इत्र, चमकदार साबुन आदि से बचना चाहिए।

 

  • एलर्जी के कारणों को ध्यान से जांचें: अक्सर शीतपित्त  का कारण एलर्जी होती है। इसलिए, यदि आपको शीतपित्त  होती है, तो आपको उस चीज को तुरंत छोड़ देना चाहिए जो आपको एलर्जी करती है।

 

  • रुकें एवं शांत रहें: शीतपित्त  के समय बहुत से लोग बेहोशी के संकेत दिखते हैं, इसलिए आपको शांत रहना चाहिए। आपको चिंता नहीं करनी चाहिए और योगाभ्यास और मेडिटेशन जैसी चीजें करनी चाहिए।

 

  • ठंडे पानी का इस्तेमाल करें: शीतपित्त  के समय आपको ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए। इससे आपकी त्वचा को शीतलता मिलती है जो आपको राहत देगी।

 

सारांश

शीतपित्त एक त्वचा समस्या है जिसमें त्वचा पर खुजली, लाल रंग के फोड़ों या सफेद फुंसियों का विकास होता है। आयुर्वेदिक उपचार जैसे जड़ी-बूटियां, तेल, आहार और जीवनशैली के बदलाव के माध्यम से इस समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है। यह समस्या एलर्जी, संक्रमण, दवाओं और तनाव जैसे विभिन्न कारकों से हो सकती है। आयुर्वेदिक उपचारों का उपयोग एक योग्य आयुर्वेद प्रैक्टिशनर के मार्गदर्शन में किया जाना चाहिए और अगर ज़रूरत हो तो साथ ही उपचार के रूप में पारंपरिक चिकित्सा का भी उपयोग किया जाना चाहिए।

 

Source: https://prakritivedawellness.com/